अलम Poetry (page 9)

वो कम-नसीब जो अहद-ए-जफ़ा में रहते हैं

अख़्तर ज़ियाई

आँख दरिया जिगर लहू करना

अख़्तर ज़ियाई

बस्ती की लड़कियों के नाम

अख़्तर शीरानी

बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले

अख़्तर शीरानी

सुन के रूदाद-ए-अलम मेरी वो हँस कर बोले

अख़तर मुस्लिमी

किसी से लड़ाएँ नज़र और झेलें मोहब्बत के ग़म इतनी फ़ुर्सत कहाँ

अख़्तर अंसारी

जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी

अख़्तर अंसारी

हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें

अख़्तर अंसारी

ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं

अख़्तर अंसारी

वो हज़ार हम पे जफ़ा सही कोई शिकवा फिर भी रवा नहीं

अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी

रो रो के बयाँ करते फिरो रंज-ओ-अलम ख़ूब

अजमल सिद्दीक़ी

मेरे बाद आ

ऐन रशीद

कभी तिरी कभी अपनी हयात का ग़म है

अहमद राही

कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों पे निगाह थी

अहमद मुश्ताक़

धड़कती रहती है दिल में तलब कोई न कोई

अहमद मुश्ताक़

हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं

अहमद अता

तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम

आग़ा हज्जू शरफ़

हज़ीमतें जो फ़ना कर गईं ग़ुरूर मिरा

आफ़ताब इक़बाल शमीम

हम अहल-ए-नज़ारा शाम-ओ-सहर आँखों को फ़िदया करते हैं

अफ़ीफ़ सिराज

ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने

अदा जाफ़री

बेगानगी-ए-तर्ज़-ए-सितम भी बहाना-साज़

अदा जाफ़री

क़फ़स से छुटने पे शाद थे हम कि लज़्ज़त-ए-ज़िंदगी मिलेगी

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

मसरूर हो रहे हैं ग़म-ए-आशिक़ी से हम

अबु मोहम्मद वासिल

माना अपनी जान को वो भी दिल का रोग लगाएँगे

अबु मोहम्मद सहर

गोया चमन चमन न था

अबु मोहम्मद सहर

गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे

आबरू शाह मुबारक

ग़म से निस्बत है जिन्हें ज़ब्त-ए-अलम करते हैं

अबरार किरतपुरी

बाग़बाँ जश्न-ए-बहाराँ नहीं होने देते

अबरार किरतपुरी

लाला-ज़ारों में ज़र्द फूल हूँ मैं

आबिद मुनावरी

दिल उन की मोहब्बत का जो दीवाना लगे है

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

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