अलम Poetry (page 3)

लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकाँ से पहले

शकील बदायुनी

बेगाना हो के बज़्म-ए-जहाँ देखता हूँ मैं

शकील बदायुनी

वो सामने था फिर भी कहाँ सामना हुआ

शकेब जलाली

रुख़्सार आज धो कर शबनम ने पंखुड़ी के

शकेब जलाली

क्या चीज़ है ये सई-ए-पैहम क्या जज़्बा-ए-कामिल होता है

शकेब जलाली

बे-ताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हम को

शहरयार

साज़-ए-दिल साज़-ए-जुनूँ साज़-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं

शाहिद भोपाली

साअत-ए-आसूदगी देखे हुए अर्सा हुआ

शहबाज़ नदीम ज़ियाई

सफ़र का एक नया सिलसिला बनाना है

शहबाज़ ख़्वाजा

दश्त-ए-ग़ुर्बत है तो वो क्यूँ हैं ख़फ़ा हम से बहुत

शहाब जाफ़री

न दिखाइयो हिज्र का दर्द-ओ-अलम तुझे देता हूँ चर्ख़-ए-ख़ुदा की क़सम

शाह नसीर

मैं ज़ोफ़ से जूँ नक़्श-ए-क़दम उठ नहीं सकता

शाह नसीर

क्यूँ न कहें बशर को हम आतिश-ओ-आब ओ ख़ाक-ओ-बाद

शाह नसीर

सन लेवे अगर तू मिरी दिलदार की आवाज़

शाह आसिम

मौसम-ए-गुल आ गया फिर दश्त-पैमाई रहे

शाग़िल क़ादरी

दुनिया में क़स्र-ओ-ऐवाँ बे-फ़ाएदा बनाया

शाद लखनवी

हरगिज़ कभी किसी से न रखना दिला ग़रज़

शाद अज़ीमाबादी

ये सिलसिले भी रिफ़ाक़त के कुछ अजीब से हैं

शबनम शकील

सुना के रंज-ओ-अलम मुझ को उलझनों में न डाल

शब्बीर नाज़िश

लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-अलम ही से सुकूँ आ जाए है

सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर

उन को देखा तो तबीअ'त में रवानी आई

सरदार सोज़

मिरा ये ज़ख़्म सीने का कहीं भरता है सीने से

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

कुछ बद-गुमानियाँ हैं कुछ बद-ज़बानियाँ हैं

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

क़ासिद तिरे बार बार आए

सख़ी लख़नवी

पहलू में बैठ कर वो पाते क्या

सख़ी लख़नवी

निराली रातें

सज्जाद ज़हीर

'बाक़र' निशाना-ए-ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम तो हो

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो इश्क़ जो हम को लाहिक़ था

साजिदा ज़ैदी

हमारी रूह का नग़्मा कहाँ है?

साजिदा ज़ैदी

इतने दुखी हैं हम को मसर्रत भी ग़म बने

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

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