अलम Poetry (page 4)

विर्सा

साहिर लुधियानवी

दिल पे गर चोट न लगती तो न इशरत थी न ग़म

सहाब क़ज़लबाश

ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा

साग़र सिद्दीक़ी

सारी जफ़ाएँ सारे करम याद आ गए

साग़र ख़य्यामी

कहूँ तो क्या मैं कहूँ प्यारी प्यारी आँखों को

साग़र ख़य्यामी

'बेदिल' का तख़य्युल हूँ न ग़ालिब की नवा हूँ

सादिक़ नसीम

तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है

सदा अम्बालवी

करना ही पड़ेगा ज़ब्त-ए-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आँसू

सबा अफ़ग़ानी

सामने उन को पाया तो हम खो गए आज फिर हसरत-ए-गुफ़्तुगू रह गई

सबा अफ़ग़ानी

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काँटों से भी ज़ीनत होती है

सबा अफ़ग़ानी

ज़ोम न कीजो शम्अ-रू बज़्म के सोज़ ओ साज़ पर

साइल देहलवी

सर-ए-राह इक हादिसा हो गया

ऋषि पटियालवी

जब नशात-ए-अलम नहीं होता

रिफ़अत सुलतान

सुकूत-ए-शाम में गूँजी सदा उदासी की

रहमान फ़ारिस

कोह-ए-ग़म इतना गराँ इतना गराँ है अब के

रज़ी रज़ीउद्दीन

तुझे ऐ ज़ाहिद-बदनाम समझाना भी आता है

रज़ा जौनपुरी

चुप हो क्यूँ ऐ पयम्बरान-ए-क़लम

रज़ा हमदानी

ऐ बुत-ए-ना-आश्ना कब तुझ से बेगाने हैं हम

रज़ा अज़ीमाबादी

किस को लहद और मर्ग का डर हो

रशीद रामपुरी

कहते हो मुझे बे-अदब ख़ैर मैं बे-अदब सही

रशीद रामपुरी

है निहायत सख़्त शान-ए-इम्तिहान-ए-कू-ए-दोस्त

रशीद रामपुरी

मिरी जबीं का मुक़द्दर कहीं रक़म भी तो हो

रशीद क़ैसरानी

फिर कोई ख़लिश नज़्द-ए-राग-ए-जाँ तो नहीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

रईस अमरोहवी

नाकाम मेरी कोशिश-ए-ज़ब्त-ए-अलम नहीं

राही शहाबी

कितने ही लोग दिल तलक आ कर गुज़र गए

इक़बाल मतीन

तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन

इंशा अल्लाह ख़ान

आसूदा-ए-मता-ए-करम बोलते नहीं

इनाम हनफ़ी

रात चराग़ की महफ़िल में शामिल एक ज़माना था

इमदाद निज़ामी

इंतिबाह

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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