दिल पे गर चोट न लगती तो न इशरत थी न ग़म

दिल पे गर चोट न लगती तो न इशरत थी न ग़म

साज़ के पर्दे से बाहर न निकलता सरगम

हम को बख़्शा है ज़माने ने जहाँ-भर का अलम

ताब-ए-ख़ुर्शीद से छलनी हुआ क़ल्ब-ए-शबनम

अब ये हालत है कि वो ख़ुद हुए माइल-ब-करम

आज याद आए बहुत हम को ज़माने के सितम

ख़ाक-ए-परवाना दम-ए-सुब्ह उड़ी जाती है

खुल न जाए कहीं महफ़िल के चराग़ों का भरम

जैसे ऊषा की लरज़ती हुई पहली आहट

यूँ तबस्सुम तिरे होंटों पे है दरहम-बरहम

ख़ालिक़-ए-जूद-ओ-सख़ा ये तो बड़ी बात न थी

तेरी दुनिया में तबस्सुम को तरसते रहे हम

(483) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sahab Qazalbash. is written by Sahab Qazalbash. Complete Poem in Hindi by Sahab Qazalbash. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.