शब्द Poetry (page 2)

शायरों का जब्र

ताबिश कमाल

मेरी बीवी क़ब्र में लेटी है जिस हंगाम से

सय्यद ज़मीर जाफ़री

हम उन की नज़र में समाने लगे

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

याद के त्यौहार में वस्ल-ओ-वफ़ा सब चाहिए

सय्यद मुनीर

हम से पहले तो कोई यूँ न फिरा आवारा

सय्यद मुनीर

ग़म-हा-ए-रोज़गार से फ़ुर्सत नहीं मुझे

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

उतर के धूप जब आएगी शब के ज़ीने से

सय्यद अहमद शमीम

नग़्मा ऐसा भी मिरे सीना-ए-सद-चाक में है

सय्यद आबिद अली आबिद

चारों ओर समुंदर है

स्वप्निल तिवारी

आइनों में अक्स बिन कर जिन के पैकर आ गए

सुलतान निज़ामी

कचोके दिल को लगाता हुआ सा कुछ तो है

सुलेमान ख़ुमार

इस घनी शब का सवेरा नहीं आने वाला

सुलेमान ख़ुमार

कब करोगे हमारा इस्तिक़बाल

सुबोध लाल साक़ी

जब खुले मुट्ठी तो सब पढ़ लें ख़त-ए-तक़्दीर को

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

अब तेरे लिए हैं न ज़माने के लिए हैं

शुजा ख़ावर

हैबत-ए-हुस्न से अल्फ़ाज़ की हैरानी तक

शोएब निज़ाम

मोहब्बत मअ'नी ओ अल्फ़ाज़ में लाई नहीं जाती

शेरी भोपाली

मार कर तीर जो वो दिलबर-ए-जानी माँगे

ज़ौक़

होगी इस ढेर इमारत की कहानी कुछ तो

शहपर रसूल

मेरे अल्फ़ाज़ में असर रख दे

शीन काफ़ निज़ाम

संग-आबाद की एक दुकाँ

शाज़ तमकनत

हम कि अफ़्कार को तज्सीम किया करते हैं

शाकिर कुंडान

ज़ात का गहरा अंधेरा है बिखर जा मुझ में

शकील मज़हरी

सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने

शकील बदायुनी

लिखे हुए अल्फ़ाज़ में तासीर नहीं है

शाइस्ता मुफ़्ती

ऐ हवाओ! मुझे दामन में छुपा ले जाओ

शैदा रूमानी

ज़वाल की हद

शहरयार

अहल-ए-दिल को बुला रहा हूँ

शहराम सर्मदी

वो मिरे कासे में यादें छोड़ कर यूँ चल दिया

शहनवाज़ ज़ैदी

दरीचा आइने पर खुल रहा है

शहनवाज़ ज़ैदी

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