आवाज Poetry (page 22)

ग़ालिब

गुलज़ार

देखो आहिस्ता चलो

गुलज़ार

तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए

गुलज़ार

तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की

गुलज़ार

ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर

गुलज़ार

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

गुलज़ार

एक परवाज़ दिखाई दी है

गुलज़ार

इश्क़ अहद-ए-बेवफ़ा में बे-नवा हो जाएगा

ग़ुलाम नबी आवान

आप जब चेहरा बदल कर आ गए

गोविन्द गुलशन

नज़्म

गोपाल मित्तल

आते ही जवानी के ली हुस्न ने अंगड़ाई

गोपाल कृष्णा शफ़क़

दिए से लौ नहीं पिंदार ले कर जा रही है

ग़ज़ाला शाहिद

न मिरा ज़ोर न बस अब क्या है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सीना मदफ़न बन जाता है जीते जागते राज़ों का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अकेला दिन है कोई और न तन्हा रात होती है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

किस ने दी आवाज़ ''सिपर की ओट में था''

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल अहल-ए-वफ़ा कहने लगे

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

कोई दो-चार नहीं महव-ए-तमाशा सब हैं

ग़ुफ़रान अमजद

कोई दो चार नहीं महव-ए-तमाशा सब हैं

ग़ुफ़रान अमजद

इक ख़लिश है मिरे बाहर मिरी दम-साज़ गिरी

ग़ुफ़रान अमजद

पत्थर

ग़ज़नफ़र

ख़्वाब आँखों की गली छोड़ के जाने निकले

ग़यास मतीन

आँख की पुतली में सूरज सर में कुछ सौदा उगा

ग़यास मतीन

मेरी ये आरज़ू है वक़्त-ए-मर्ग

ग़मगीन देहलवी

जो न वहम-ओ-गुमान में आवे

ग़मगीन देहलवी

न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़

ग़ालिब

मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की

ग़ालिब

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