अनादिकाल Poetry (page 7)

तरब से हो आया हूँ और यास की तह तक डूब चुका हूँ

हमीद नसीम

चर्चा हमारा इश्क़ ने क्यूँ जा-ब-जा किया

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का

हैदर अली आतिश

अब ख़ूब हँसेगा दीवाना

हफ़ीज़ जालंधरी

तीर चिल्ले पे न आना कि ख़ता हो जाना

हफ़ीज़ जालंधरी

है अज़ल की इस ग़लत बख़्शी पे हैरानी मुझे

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे

हफ़ीज़ जालंधरी

पैग़ाम ईद

हफ़ीज़ बनारसी

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

हबीब मूसवी

है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है

हबीब मूसवी

जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ज़ाब्ते और ही मिस्दाक़ पे रक्खे हुए हैं

गुलज़ार बुख़ारी

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

जौहर-ए-आसमाँ से क्या न हुआ

ग़ुलाम मौला क़लक़

तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था

ग़ालिब

साँप! आ काट मुझे

गौहर नौशाही

तमाम अजनबी चेहरे सजे हैं चारों तरफ़

फ़िराक़ जलालपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में

फ़िराक़ गोरखपुरी

साक़ी ने निगाहों से पिला दी है ग़ज़ब की

फ़िगार उन्नावी

अपनी ग़ज़ल को ख़ून का सैलाब ले गया

फ़ारूक़ नाज़की

जो रहा यूँ ही सलामत मिरा जज़्ब-ए-वालहाना

फ़ारूक़ बाँसपारी

उस तरफ़

फ़रहत एहसास

उधर वो दश्त-ए-मुसलसल इधर मुसलसल मैं

फ़रहत एहसास

रास्ता दे ऐ हुजूम-ए-शहर घर जाएँगे हम

फ़रहत एहसास

नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे

फ़रहत एहसास

नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का

फ़ानी बदायुनी

मुझ को मिरे नसीब ने रोज़-ए-अज़ल से क्या दिया

फ़ानी बदायुनी

ऐ मौत तुझ पे उम्र-ए-अबद का मदार है

फ़ानी बदायुनी

ऐ अजल ऐ जान-ए-'फ़ानी' तू ने ये क्या कर दिया

फ़ानी बदायुनी

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