अनादिकाल Poetry (page 2)

नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह

वलीउल्लाह मुहिब

मावरा

वहीद अख़्तर

उन को रोज़ इक ताज़ा हीला एक ख़ंजर चाहिए

वहीद अख़्तर

हक़ीक़त से जो आश्ना हो गया

वफ़ा बराही

कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले

उनवान चिश्ती

दिन में सूरज है मिरी महरूमियों का तर्जुमाँ

तिश्ना बरेलवी

ख़ाक-ए-हिंद

तिलोकचंद महरूम

फ़ित्ना-आरा शोरिश-ए-उम्मीद है मेरे लिए

तिलोकचंद महरूम

दस्त-ए-ख़िरद से पर्दा-कुशाई न हो सकी

तिलोकचंद महरूम

दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है

तौक़ीर तक़ी

आ गई धूप मिरी छाँव के पीछे पीछे

तौक़ीर रज़ा

कौन है नेक कौन बद है यहाँ

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

मैं हबीब हूँ किसी और का मिरी जान-ए-जाँ कोई और है

तारिक़ मतीन

माँगने से तो हुकूमत नहीं मिलने वाली

तनवीर गौहर

गुलों के साथ अजल के पयाम भी आए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

ऐसा कहाँ हुबाब कोई चश्म-ए-तर कि हम

ताबाँ अब्दुल हई

जो तिरी महफ़िल से ज़ौक़-ए-ख़ाम ले कर आए हैं

सय्यदा शान-ए-मेराज

तंदुरुस्ती दी ख़ुदा ने तो नक़ाहत न गई

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

क्लर्क

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

गंगा जी

सुरूर जहानाबादी

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

न किसी को फ़िक्र-ए-मंज़िल न कहीं सुराग़-ए-जादा

सुरूर बाराबंकवी

जब तलक रौशनी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र बाक़ी है

सुरूर बाराबंकवी

हर बात तिरी जान-ए-जहाँ मान रहा हूँ

सुलैमान अरीब

याद आती है तिरी यूँ मिरे ग़म-ख़ाने में

सुदर्शन कुमार वुग्गल

वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से

सिराज लखनवी

जो शाना गेसू-ए-जानाँ में हम कभू करते

शऊर बलगिरामी

तेरी उल्फ़त में न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा

शोला हस्पानवी

राज़-ए-फ़ितरत निहाँ था निहाँ है अभी

शोला हस्पानवी

साँस की आस निगहबाँ है ख़बर-दार रहो

शोहरत बुख़ारी

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