बाद Poetry (page 5)

जल्वा-गर फ़ानूस-ए-तन में है हमारा मन चराग़

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हम को कब इंतिज़ार है फ़स्ल-ए-बहार हो न हो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

साक़ी मय-ए-गुल-रंग मिरे लब से मिला देख

शैख़ मीर बख़्श मसरूर

रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया

शहज़ाद अहमद

हवा के हौसले ज़ंजीर करना चाहता है

शहनाज़ नूर

तितलियाँ फूल में क्या ढूँढती रहती हैं सदा

शहनवाज़ ज़ैदी

रौशन आईनों में झूटे अक्स उतार गया

शहनवाज़ ज़ैदी

हर किसी ख़्वाब के चेहरे पे लिखूँ नाम तिरा

शहनवाज़ ज़ैदी

रोज़ खुलने की अदा भी तो नहीं आती है

शाहिद लतीफ़

अब्र लिखती है कहीं और घटा लिखती है

शाहिद कमाल

ख़ाक-ए-दिल कहकशाँ से मिलती है

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

सुब्ह-ए-गुलशन में हो गर वो गुल-ए-ख़ंदाँ पैदा

शाह नसीर

क्यूँ न कहें बशर को हम आतिश-ओ-आब ओ ख़ाक-ओ-बाद

शाह नसीर

हार बना इन पारा-ए-दिल का माँग न गजरा फूलों का

शाह नसीर

दम ले ऐ कोहकन अब तेशा-ज़नी ख़ूब नहीं

शाह नसीर

बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ

शाह नसीर

थी लगन सुनते तिरी शोख़ी-ए-पा की आहट

शाग़िल क़ादरी

उम्र भर डोलती यादों की ज़िया से खेले

शफ़क़त बटालवी

उस ने अफ़्शाँ जो चुनी रात को तन्हा हो कर

शाद लखनवी

क्या ये बुत बैठेंगे ख़ुदा बन कर

शाद लखनवी

जो बीच में आइना हो प्यारे इधर हमारे उधर तुम्हारे

शाद लखनवी

ऐ बुत जफ़ा से अपनी लिया कर वफ़ा का काम

शाद अज़ीमाबादी

दोस्तों का ज़िक्र क्या दुश्मन हैं जब बदले हुए

शबनम शकील

वही इक फ़रेब हसरत कि था बख़्शिश-ए-निगाराँ

शानुल हक़ हक़्क़ी

जहान-ए-दिल में हुए इंक़लाब और ही कुछ

शानुल हक़ हक़्क़ी

ऐ दिल अब और कोई क़िस्सा-ए-दुनिया न सुना

शानुल हक़ हक़्क़ी

अपने जी में जो ठान लेंगे आप

शाद आरफ़ी

अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं

सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर

जिगर के ख़ून से रौशन गो ये चराग़ रहा

सय्यद एजाज़ अहमद रिज़वी

उस को देखा तो दिखा कुछ भी नहीं

सय्यद ज़िया अल्वी

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