बाद Poetry (page 2)
रंग बदला फिर हवा का मय-कशों के दिन फिरे
यगाना चंगेज़ी
वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला
यगाना चंगेज़ी
क़ब्र पर बाद-ए-फ़ना आइएगा
वज़ीर अली सबा लखनवी
ये तूफ़ान-ए-हवादिस और तलातुम बाद ओ बाराँ के
वासिफ़ देहलवी
वो जिन की लौ से हज़ारों चराग़ जलते थे
वासिफ़ देहलवी
वो जिस की जुस्तुजू-ए-दीद में पथरा गईं आँखें
वासिफ़ देहलवी
वो जिन की लौ से हज़ारों चराग़ जलते थे
वासिफ़ देहलवी
नहीं मालूम कितने हो चुके हैं इम्तिहाँ अब तक
वासिफ़ देहलवी
मज़ा था हम को जो बुलबुल से दू-बदू करते
वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी
दिल के वीराने को यूँ आबाद कर लेते हैं हम
वामिक़ जौनपुरी
नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह
वलीउल्लाह मुहिब
जिन दिनों हम उस शब-ए-हज़ के सियह-कारों में थे
वली उज़लत
गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़
वली उज़लत
बरबाद न कर उस को ज़रा हाथ पे धर ला
वाजिद अली शाह अख़्तर
मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ज़िंदगी
वहीदुद्दीन सलीम
हमेशा ख़ून-ए-शहीदाँ के रंग से आबाद
वहीद क़ुरैशी
पत्थरों का मुग़न्नी
वहीद अख़्तर
हम ने देखा है मोहब्बत का सज़ा हो जाना
वहीद अख़्तर
दूसरी रात
वर्षा गोरछिया
खोए हुए सहरा तक ऐ बाद-ए-सबा जाना
वारिस किरमानी
ज़िंदाबाद ऐ दश्त के मंज़र ज़िंदाबाद
उनवान चिश्ती
वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं
उनवान चिश्ती
जब ज़ुल्फ़ शरीर हो गई है
उनवान चिश्ती
बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं
उनवान चिश्ती
सफ़र की हद थी जो रात थी
उमर फ़रहत
बाइस-ए-इम्बिसात हो आमद-ए-नौ-बहार क्या
तिलोकचंद महरूम
इस बार हुआ कुन का असर और तरह का
तसनीम आबिदी
रौनक़ें आबादियाँ क्या क्या चमन की याद हैं
तालिब अली खान ऐशी
न पहुँचा साथ यारान-ए-सफ़र की ना-तवानी से
तालिब अली खान ऐशी
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