ये तूफ़ान-ए-हवादिस और तलातुम बाद ओ बाराँ के
मोहब्बत के सहारे कश्ती-ए-दिल है रवाँ अब तक
Gulzar
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(695) Peoples Rate This
किसी को याद कर के एक दिन ख़ल्वत में रोया था
हल्की सी ख़लिश दिल में निगाहों में उदासी
वो जिन की लौ से हज़ारों चराग़ जलते थे
अगर ख़ू-ए-तहम्मुल हो तो कोई ग़म नहीं होता
कहते हैं सर-ए-राह मुनासिब नहीं मिलना
बुझते हुए चराग़ फ़रोज़ाँ करेंगे हम
कितनी घटाएँ आईं बरस कर गुज़र गईं
खुलने ही लगे उन पर असरार-ए-शबाब आख़िर
वो जल्वा तूर पर जो दिखाया न जा सका
क़िस्मत की तीरगी की कहानी न पूछिए
हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते