तितलियाँ फूल में क्या ढूँढती रहती हैं सदा
क्या कहीं बाद-ए-सबा रख गई पैग़ाम तिरा
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दिल भी दाग़-ए-नक़्श-ए-कुहन से बुझा हुआ था
हर किसी ख़्वाब के चेहरे पे लिखूँ नाम तिरा
सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के
उस की आँखों में मोहब्बत का गुमाँ तक नहीं आज
चेहरों को पैरों से कुचल कर आगे बढ़ जाना
किसी बंजर तख़य्युल पर किसी बे-आब रिश्ते में
मेज़ पे चेहरा ज़ुल्फ़ें काग़ज़ पर
''जो भी आवे है वो नज़दीक ही बैठे है तिरे''
सहर होते ही जैसे रेत भर जाती है साँसों में
ये सूखे पत्ते नहीं ज़माने पे तब्सिरे हैं
पहले जैसा नहीं रहा हूँ