ये सूखे पत्ते नहीं ज़माने पे तब्सिरे हैं
शजर ने लिख कर बिखेर दी हैं फ़ज़ा में बातें
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शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की दवा मैं क्या करता
सहर होते ही जैसे रेत भर जाती है साँसों में
सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के
उस की आँखों में मोहब्बत का गुमाँ तक नहीं आज
मेज़ पे चेहरा ज़ुल्फ़ें काग़ज़ पर
वो मिरे कासे में यादें छोड़ कर यूँ चल दिया
पहले जैसा नहीं रहा हूँ
तेरी तख़्लीक़ तिरा रंग हवाला था मिरा
हर किसी ख़्वाब के चेहरे पे लिखूँ नाम तिरा
रौशन आईनों में झूटे अक्स उतार गया
मिरे ख़ुदा कोई छाँव कोई ज़मीं कोई घर