सहर होते ही जैसे रेत भर जाती है साँसों में
नसीम-ए-हिज्र तेरे ज़ाइक़े अच्छे नहीं लगते
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Anwar Masood
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(460) Peoples Rate This
''जो भी आवे है वो नज़दीक ही बैठे है तिरे''
पहले जैसा नहीं रहा हूँ
वो मिरे कासे में यादें छोड़ कर यूँ चल दिया
सूरज तिरी दहलीज़ में अटका हुआ निकला
दिल भी दाग़-ए-नक़्श-ए-कुहन से बुझा हुआ था
दरीचा आइने पर खुल रहा है
सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के
आओ फिर मिल जाएँ सब बातें पुरानी छोड़ कर
तितलियाँ फूल में क्या ढूँढती रहती हैं सदा
मिसरे के वस्त में खड़ा हूँ
ये सूखे पत्ते नहीं ज़माने पे तब्सिरे हैं
किसी बंजर तख़य्युल पर किसी बे-आब रिश्ते में