चेहरों को पैरों से कुचल कर आगे बढ़ जाना
जीत इसी को कहते हैं तो फिर मैं हार गया
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पहले जैसा नहीं रहा हूँ
शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की दवा मैं क्या करता
मोहब्बत से तिरी यादें जगा कर सो रहा हूँ
आओ फिर मिल जाएँ सब बातें पुरानी छोड़ कर
दरीचा आइने पर खुल रहा है
तेरी तख़्लीक़ तिरा रंग हवाला था मिरा
''जो भी आवे है वो नज़दीक ही बैठे है तिरे''
सहर होते ही जैसे रेत भर जाती है साँसों में
मिसरे के वस्त में खड़ा हूँ
मिरे ख़ुदा कोई छाँव कोई ज़मीं कोई घर
उलझा उस की दीद में