बाम Poetry (page 17)

आँख खुलने पे भी होता हूँ उसी ख़्वाब में गुम

अकरम महमूद

जो ज़ेहन-ओ-दिल के ज़हरीले बहुत हैं

अख़तर शाहजहाँपुरी

नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे

अख़तर मुस्लिमी

दिल में टीसें जाग उठती हैं पहलू बदलते वक़्त बहुत

अख्तर लख़नवी

अब दर्द का सूरज कभी ढलता ही नहीं है

अख्तर लख़नवी

इक हर्फ़-ए-फ़सुर्दा दाग़ में है

अख़्तर हुसैन जाफ़री

फिर ये हुआ कि लोग दरीचों से हट गए

अख़्तर होशियारपुरी

क्या पूछते हो मुझ से कि मैं किस नगर का था

अख़्तर होशियारपुरी

इक नूर था कि पिछले पहर हम-सफ़र हुआ

अख़्तर होशियारपुरी

जाम ला जाम कि आलाम से जी डरता है

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

न अपना नाम न चेहरा बदल के आया हूँ

अकबर मासूम

ज़िंदान-ए-सुब्ह-ओ-शाम में तू भी है मैं भी हूँ

अकबर हैदराबादी

हाँ यही शहर मिरे ख़्वाबों का गहवारा था

अकबर हैदराबादी

हंगामा क्यूँ बपा है ज़रा बाम पर से देख

आजिज़ मातवी

मकीनों के तअल्लुक़ ही से याद आती है हर बस्ती

ऐतबार साजिद

ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा

ऐतबार साजिद

फूलों में वो ख़ुशबू वो सबाहत नहीं आई

ऐतबार साजिद

न गुमान मौत का है न ख़याल ज़िंदगी का

ऐतबार साजिद

मुझे ऐसा लुत्फ़ अता किया कि जो हिज्र था न विसाल था

ऐतबार साजिद

मुहताज हम-सफ़र की मसाफ़त न थी मिरी

ऐतबार साजिद

मिरा है कौन दुश्मन मेरी चाहत कौन रखता है

ऐतबार साजिद

ढूँडते क्या हो इन आँखों में कहानी मेरी

ऐतबार साजिद

कारोबारी शहरों में ज़ेहन-ओ-दिल मशीनें हैं जिस्म कारख़ाना है

ऐनुद्दीन आज़िम

मुलाक़ातें नहीं फिर भी मुलाक़ातें

ऐन ताबिश

ताबिश ये भला कौन सी रुत आई है जानी

ऐन ताबिश

इक परिंदा शाख़ पर बैठा हुआ

ऐन इरफ़ान

नज़्ज़ारा जो होता है लब-ए-बाम तुम्हारा

अहसन मारहरवी

इल्म की ज़रूरत

अहमक़ फफूँदवी

बुझती हुई आँखों का अकेला वो दिया था

अहमद सज्जाद बाबर

चराग़ उन पे जले थे बहुत हवा के ख़िलाफ़

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

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