बाम Poetry (page 3)

उस कू मैं हुए हम वो लब-ए-बाम न आया

मीर तस्कीन देहलवी

सारे ज़ख़्मों को ज़बाँ मिल गई ग़म बोलते हैं

तारिक़ क़मर

रेआया ज़ुल्म पे जब सर उठाने लगती है

तारिक़ क़मर

कोई है बाम पर देखा तो जाए

तारिक़ मतीन

मैं बाम-ओ-दर पे जो अब साएँ साएँ लिखता हूँ

तारिक़ जामी

मैं बाम-ओ-दर पे जो अब साएँ साएँ लिखता हूँ

तारिक़ जामी

वही आहटें दर-ओ-बाम पर वही रत-जगों के अज़ाब हैं

तारिक़ बट

है किस का इंतिज़ार खुला घर का दर भी है

तारिक़ बट

ये कार-ए-बे-समर है अगर कर लिया तो क्या

तालिब अंसारी

मुझे वो छोड़ कर जब से गया है इंतिहा है

ताहिर अदीम

छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

दिल वो काफ़िर कि सदा ऐश का सामाँ माँगे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

छटे ग़ुबार नज़र बाम-ए-तूर आ जाए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

ग़म में रोता हूँ तिरे सुब्ह कहीं शाम कहीं

ताबाँ अब्दुल हई

तर्ज़-ए-नौ की शाएरी

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

सग-ए-जमाल हूँ गर्दन से बाँध कर ले जा

सय्यद काशिफ़ रज़ा

जो डर अपनों से है ग़ैरों से वो डर हो नहीं सकता

सय्यद अमीन अशरफ़

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़-ए-यार के

सुरूर बाराबंकवी

कोई भी शहर में खुल कर न बग़ल-गीर हुआ

सुल्तान अख़्तर

किसी के वास्ते जीता है अब न मरता है

सुल्तान अख़्तर

दश्त में ये जाँ-फ़ज़ाँ मंज़र कहाँ से आ गए

सुलेमान ख़ुमार

बीमार सा है जिस्म-ए-सहर काँप रहा है

सुलेमान ख़ुमार

नहीं इस दश्त में कोई ख़िज़र है

सुलैमान अहमद मानी

ज़र्द-चमेली

सूफ़िया अनजुम ताज

वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे

सूफ़ी तबस्सुम

वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे

सूफ़ी तबस्सुम

सुकून-ए-क़ल्ब ओ शकेब-ए-नज़र की बात करो

सूफ़ी तबस्सुम

यूँ सुबुक-दोश हूँ जीने का भी इल्ज़ाम नहीं

सिराज लखनवी

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