बाम Poetry (page 5)

हुक्मराँ जब से हुईं बस्ती पे अफ़्वाहें वहाँ

शहराम सर्मदी

मैं ज़हर रही हर शाम रही

शाहिदा तबस्सुम

है शर्त क़ीमत-ए-हुनर भी अब तो रब्त-ए-ख़ास पर

शाहिदा तबस्सुम

सानेहा हो के रहा चश्म का मुरझा जाना

शाहिदा हसन

लम्स आहट के हवाओं के निशाँ कुछ भी नहीं

शाहिदा हसन

कोई सर्द हवा लब-ए-बाम चली

शाहिदा हसन

चाँद के साथ जल उठी मैं भी

शाहिदा हसन

चाँद के साथ जल उठी मैं भी

शाहिदा हसन

ज़मीं तश्कील दे लेते फ़लक ता'मीर कर लेते

शाहिद लतीफ़

नन्हा सा दिया है कि तह-ए-आब है रौशन

शाहिद कमाल

शहर-ए-ख़ूबाँ से जो हम अब भी गुज़र आते हैं

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

हम पे जिस तौर भी तुम चाहो नज़र कर देखो

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

ख़ुद में उतरें तो पलट कर वापस आ सकते नहीं

शाहीन अब्बास

दाने के बा'द कुछ नहीं दाम के बा'द कुछ नहीं

शाहीन अब्बास

था बाम-ए-फ़लक ख़ाक-बसर आने लगा हूँ

शहाब सफ़दर

बे-सर-ओ-सामाँ कुछ अपनी तब्अ से हैं घर में हम

शहाब जाफ़री

जो ऐन वस्ल में आराम से नहीं वाक़िफ़

शाह नसीर

बे-मेहर-ओ-वफ़ा है वो दिल-आराम हमारा

शाह नसीर

तुम्हारी याद तो लिपटी है पूरे घर के मंज़र से

सगुफ़ता यासमीन

हम ख़राबे में बसर कर गए ख़ामोशी से

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

सर में एक सौदा था बाम-ओ-दर बनाने का

शफ़ीक़ सलीमी

कुछ सबील-ए-रिज़्क़ हो फिर कहीं मकाँ भी हो

शफ़क़ सुपुरी

गले लिपटे हैं वो बिजली के डर से

शाद लखनवी

मिल बैठने के सारे क़रीनों की ख़ैर हो

शबनम शकील

इक बे-नाम सी खोज है दिल को जिस के असर में रहते हैं

शबनम शकील

लौट आएगा किसी शाम यही लगता है

शबाना यूसुफ़

जो हो वरा-ए-ज़ात वो जीना ही और है

शानुल हक़ हक़्क़ी

क्या करें गुलशन पे जोबन ज़ेर-ए-दाम आया तो क्या

शाद आरफ़ी

अश्क पीते रहे हर जाम पे हँसते हँसते

सय्यद ज़िया अल्वी

ने ग़रज़ कुफ़्र से रखते हैं न इस्लाम से काम

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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