बाम Poetry (page 4)
क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी
सिराज लखनवी
अब इतनी अर्ज़ां नहीं बहारें वो आलम-ए-रंग-ओ-बू कहाँ है
सिराज लखनवी
हम शहर में इक शम्अ की ख़ातिर हुए बर्बाद
शोहरत बुख़ारी
अब्र का टुकड़ा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ
शोएब निज़ाम
तुझे दिल में बसाएँगे तिरे ही ख़्वाब देखेंगे
शमशाद शाद
अदल-ए-जहाँगीरी
शिबली नोमानी
वो रक़्स करने लगीं हवाएँ वो बदलियों का पयाम आया
शेवन बिजनौरी
नहीं सबात बुलंदी-ए-इज्ज़-ओ-शाँ के लिए
ज़ौक़
कौन वक़्त ऐ वाए गुज़रा जी को घबराते हुए
ज़ौक़
ज़मीं का क़र्ज़
शाज़ तमकनत
बे-नंग-ओ-नाम
शाज़ तमकनत
शैख़ ओ बरहमन दोनों हैं बर-हक़ दोनों का हर काम मुनासिब
शौक़ बहराइची
ये रात कितनी भयानक है बाम-ओ-दर के लिए
शातिर हकीमी
सजे हुए बाम-ओ-दर से आगे की सोचता हूँ
शमशीर हैदर
ख़ुश-कुन ख़बर के धोके में रक्खा गया मुझे
शमशीर हैदर
दूर फ़ज़ा में एक परिंदा खोया हुआ उड़ानों में
शम्स फ़र्रुख़ाबादी
ख़मोश किस लिए बैठे हो चश्म-ए-तर क्यूँ हो
शमीम करहानी
दर्द-शनास दिल नहीं जल्वा-तलब नज़र नहीं
शमीम करहानी
नुमाइश-ए-अलीगढ़
शकील बदायुनी
कहाँ है आ जा
शकील बदायुनी
ख़ुश हूँ कि मिरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया
शकील बदायुनी
ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे
शकील बदायुनी
रात के पिछले पहर
शकेब जलाली
तू ने क्या क्या न ऐ ज़िंदगी दश्त ओ दर में फिराया मुझे
शकेब जलाली
इस ख़ाक-दाँ में अब तक बाक़ी हैं कुछ शरर से
शकेब जलाली
आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे
शकेब जलाली
जुनून-ए-इश्क़ की आमादगी ने कुछ न दिया
शाइस्ता सहर
तन्हाई में आ जाती हैं हूरें मिरे घर में
शहज़ाद अहमद
कुछ तज़किरा-ए-हुस्न से रौशन थे दर-ओ-बाम
शहज़ाद अहमद
इबलीस भी रख लेते हैं जब नाम फ़रिश्ते
शहज़ाद अहमद
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