बाम Poetry (page 18)

हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

गर्दिश-ए-जाम नहीं गर्दिश-ए-अय्याम तो है

अहमद राही

लब-ए-ख़ामोश से इफ़्शा होगा

अहमद नदीम क़ासमी

अपने माहौल से थे क़ैस के रिश्ते क्या क्या

अहमद नदीम क़ासमी

जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरे

अहमद मुश्ताक़

मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है

अहमद मुश्ताक़

खड़े हैं दिल में जो बर्ग-ओ-समर लगाए हुए

अहमद मुश्ताक़

हमारी हम-नफ़सी को भी क्या दवाम हुआ

अहमद जावेद

दिलों को रंज ये कैसा है ये ख़ुशी क्या है

अहमद हमदानी

तसलसुल

अहमद फ़राज़

सरहदें

अहमद फ़राज़

कर गए कूच कहाँ

अहमद फ़राज़

काली दीवार

अहमद फ़राज़

दोस्ती का हाथ

अहमद फ़राज़

ये बे-दिली है तो कश्ती से यार क्या उतरें

अहमद फ़राज़

उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया

अहमद फ़राज़

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

सब लोग लिए संग-ए-मलामत निकल आए

अहमद फ़राज़

पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे

अहमद फ़राज़

न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो

अहमद फ़राज़

हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया

अहमद फ़राज़

ग़ैरत-ए-इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी

अहमद फ़राज़

मैं तो सोया भी न था क्यूँ ये दर-ए-ख़्वाब गिरा

अहमद अज़ीम

कौन है किस का ये पैग़ाम है क्या अर्ज़ करूँ

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

अपने ही तले आई ज़मीनों से निकल कर

अफ़ज़ाल नवेद

जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है

अफ़ज़ल ख़ान

लुटा रहा हूँ मैं लाल-ओ-गुहर अँधेरे में

अफ़ज़ल इलाहाबादी

शब-ए-सियाह पे वा रौशनी का बाब तो हो

आफ़ताब हुसैन

ये रेग-ए-रवाँ याद-दहानी तो नहीं क्या

आफ़ताब अहमद

जब अपना साया ही दुश्मन है क्या किया जाए

अफ़रोज़ आलम

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