रुक जाएगा Poetry (page 3)

उठ चले वो तो इस में हैरत क्या

साग़र ख़य्यामी

कैसे करें बंदगी 'ज़फ़र' वाँ

साबिर ज़फ़र

क़िस्मत में अगर जुदाइयाँ हैं

साबिर ज़फ़र

'बद्र' यूँ तो सभी से मिलता है

साबिर बद्र जाफ़री

अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक

सबा अकबराबादी

नहीं क़ौल से फ़ेल तेरे मुताबिक़

रिन्द लखनवी

हैं ये सारे जीते-जी के वास्ते

रिन्द लखनवी

होते हैं ख़त्म अब ये लम्हात ज़िंदगी के

रिफ़अत सेठी

हैं बे-नियाज़-ए-ख़ल्क़ तिरा दर है और हम

रशीद रामपुरी

वो जो भी बख़्शें वो इनआम ले लिया जाए

रम्ज़ आफ़ाक़ी

दिल-ओ-नज़र में न पैदा हुई शकेबाई

राम कृष्ण मुज़्तर

ये शहर शहर-ए-बला भी है कीना-साज़ के साथ

रईस अमरोहवी

ये निगाह-ए-शर्म झुकी झुकी ये जबीन-ए-नाज़ धुआँ धुआँ

इक़बाल अज़ीम

तिरी फ़ुज़ूल बंदगी बना न दे ख़ुदा मुझे

इम्तियाज़ अहमद

नज़र जो आया उस पे ए'तिबार कर लिया गया

इफ़्फ़त अब्बास

शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं

इब्न-ए-मुफ़्ती

नफ़रतें न अदावतें बाक़ी हैं

इब्न-ए-मुफ़्ती

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

उलझनें इतनी थीं मंज़र और पस-मंज़र के बीच

हुसैन ताज रिज़वी

अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम

हसरत मोहानी

जो हमें चाहे उस के चाकिर हैं

हसरत अज़ीमाबादी

हम बे-नियाज़ बैठे हुए उन की बज़्म में

हाशिम रज़ा जलालपुरी

वो सब में हम को बार-ए-दिगर देखते रहे

हाशिम रज़ा जलालपुरी

दिल लुटेगा जहाँ ख़फ़ा होगा

हसन कमाल

तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया

हैदर अली आतिश

इस शश-जिहत में ख़ूब तिरी जुस्तुजू करें

हैदर अली आतिश

यूँ उठा दे हमारे जी से ग़रज़

हफ़ीज़ जौनपुरी

ख़फ़ा है गर ये ख़ुदाई तो फ़िक्र ही क्या है

हफ़ीज़ बनारसी

तू न हो हम-नफ़स अगर जीने का लुत्फ़ ही नहीं

हादी मछलीशहरी

न बेताबी न आशुफ़्ता-सरी है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

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