कैसे करें बंदगी 'ज़फ़र' वाँ
बंदों की जहाँ ख़ुदाइयाँ हैं
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दरीचा बे-सदा कोई नहीं है
किसी ख़याल की सरशारी में जारी-ओ-सारी यारी में
मैं सोचता हूँ मुझे इंतिज़ार किस का है
नामा-बर कोई नहीं है तो किसी लहर के हाथ
वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है
कुछ बे-ठिकाना करती रहीं हिजरतें मुदाम
शिकायत उस से नहीं अपने-आप से है मुझे
तन्हाई तामीर करेगी घर से बेहतर इक ज़िंदान
ये सोच के राख हो गया हूँ
नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
हर शख़्स बिछड़ चुका है मुझ से
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम