हम बे-नियाज़ बैठे हुए उन की बज़्म में
औरों की बंदगी का असर देखते रहे
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तिरे ख़याल तिरी आरज़ू से दूर रहे
बदन से रूह हम-आग़ोश होने वाली थी
तुम चुप रहे पयाम-ए-मोहब्बत यही तो है
तमाशा अहल-ए-मोहब्बत ये चार-सू करते
सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के
फ़ैसला हिज्र का मंज़ूर भी हो सकता है
महफ़िल में लोग चौंक पड़े मेरे नाम पर
दिल-मोहल्ला ग़ुलाम हो जाए
परिंदा क़ैद में कुल आसमान भूल गया
मुस्तक़िल हाथ मिलाते हुए थक जाता हूँ
बहुत दिन तक कोई चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता