महफ़िल में लोग चौंक पड़े मेरे नाम पर
तुम मुस्कुरा दिए मिरी क़ीमत यही तो है
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तमाशा अहल-ए-मोहब्बत ये चार-सू करते
परिंदा क़ैद में कुल आसमान भूल गया
तू नहीं है तो तिरे हमनाम से रिश्ता रक्खा
दश्त में ख़ाक उड़ाते हैं दुआ करते हैं
मुस्तक़िल हाथ मिलाते हुए थक जाता हूँ
ज़र्द मौसम में भी इक शाख़ हरी रहती है
दिल-मोहल्ला ग़ुलाम हो जाए
ज़मीनों में सितारे बो रहा हूँ
हम बे-नियाज़ बैठे हुए उन की बज़्म में
सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के
मज़हब-ए-इश्क़ में शजरा नहीं देखा जाता
तुम चुप रहे पयाम-ए-मोहब्बत यही तो है