जागरूक Poetry (page 2)

आँख जो इश्वा-ए-पुर-कार लिए फिरती है

सय्यद हामिद

इस तरह चश्म-ए-नीम-वा ग़ाफ़िल भी थी बेदार भी

सय्यद अमीन अशरफ़

ख़ाना-बर्बाद हुए बे-दर-ओ-दीवार रहे

सुल्तान अख़्तर

तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो

सूफ़ी तबस्सुम

शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार

सूफ़ी तबस्सुम

यूँ सुबुक-दोश हूँ जीने का भी इल्ज़ाम नहीं

सिराज लखनवी

फ़ितरत-ए-इश्क़ गुनहगार हुई जाती है

सिराज लखनवी

अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा

सिराज औरंगाबादी

एक बे-मंज़र उदासी चार-सू आँखों में है

सिद्दीक़ मुजीबी

बादा-ए-इश्क़ से सरशार गुरु-नानक थे

श्याम सुंदर लाल बर्क़

इस तरह पहुँचेगा कैसे पाया-ए-तकमील को

शुजा ख़ावर

यार को रग़बत-ए-अग़्यार न होने पाए

शिबली नोमानी

यही सफ़र की तमन्ना यही थकन की पुकार

शाज़ तमकनत

दर्द में जब कमी सी होती है

शातिर हकीमी

महफ़िल का नूर मरजा-ए-अग़्यार कौन है

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

निगाह-ए-नाज़ का इक वार कर के छोड़ दिया

शकील बदायुनी

लम्हा लम्हा बार है तेरे बग़ैर

शकील बदायुनी

ये सितारे मुझे दीवार नहीं होने के

शाइस्ता सहर

गुल नहीं ख़ार समझते हैं मुझे

शाइस्ता सहर

याँ मुद्दई' अपना किसे ऐ यार न देखा

शैख़ मोहम्मद रोशन जोशिश लखनवी

आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए

शहरयार

ये जो इज़हार करना होता है

शाहिद ज़की

मोहब्बत मुझ से कहती थी ज़रा होश्यार दामन से

शाहिद भोपाली

गरमी-ए-पहलू-ए-दिलदार ने सोने न दिया

शहबाज़ नदीम ज़ियाई

बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ

शाह नसीर

कली पर मुस्कुराहट आज भी मालूम होती है

शफ़ीक़ जौनपुरी

अक्सर अपने दर-पए-आज़ार हो जाते हैं हम

शबनम शकील

बरतर समाज से कोई फ़नकार भी नहीं

शबाब ललित

नींद से आँख वो मिल कर जागे

शायर लखनवी

इक महक सी दम-ए-तहरीर कहाँ से आई

शानुल हक़ हक़्क़ी

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