अक्सर अपने दर-पए-आज़ार हो जाते हैं हम

अक्सर अपने दर-पए-आज़ार हो जाते हैं हम

सोचते हैं इस क़दर बीमार हो जाते हैं हम

मुज़्तरिब ठहरे सो शब में देर से आती है नींद

सुब्ह से पहले मगर बेदार हो जाते हैं हम

नाम की ख़्वाहिश हमें करती है सरगर्म-ए-अमल

इस अमल से भी मगर बेज़ार हो जाते हैं हम

झूटा वादा भी अगर करती है मलने का ख़ुशी

वक़्त से पहले बहुत तय्यार हो जाते हैं हम

भूल कर वो बख़्श दे गर रौशनी की इक किरन

दाइमी शोहरत के दावेदार हो जाते हैं हम

मुतमइन होना भी अपने बे-ख़बर होने से है

बे-सुकूँ होते हैं जब हुशियार हो जाते हैं हम

इक ज़रा सी बात और फिर अश्क थमते ही नहीं

लहर सी इक दिल में और सरशार हो जाते हैं हम

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In Hindi By Famous Poet Shabnam Shakeel. is written by Shabnam Shakeel. Complete Poem in Hindi by Shabnam Shakeel. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.