जागरूक Poetry (page 4)

ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं

साग़र सिद्दीक़ी

ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं

साग़र सिद्दीक़ी

तराना-ए-क़ौमी

सफ़ीर काकोरवी

जब बीनाई सावन ने चुराई हो

सईद अहमद

खेल रचाया उस ने सारा वर्ना फिर क्यूँ होता मैं

साबिर वसीम

जो भी होगा वार देखा जाएगा

सबीहा सबा, पाकिस्तान

हम ने ख़ाक-ए-दर-ए-महबूब जो चेहरे पे मली

सबा जायसी

जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर

सबा अकबराबादी

हर तल्ख़ हक़ीक़त का इज़हार भी करना है

रूही कंजाही

ले जाऊँ कहीं उन को बदन पार ही रक्खूँ

रियाज़ लतीफ़

दिल को मामूर करो जज़्ब-ओ-असर से पहले

रज़ा जौनपुरी

इश्क़ दुश्वार नहीं ख़ुश-नज़री मुश्किल है

रविश सिद्दीक़ी

ज़बाँ पे हर्फ़ तो इंकार में नहीं आता

रऊफ़ ख़ैर

ग़फ़लत में कटी उम्र न हुश्यार हुए हम

रासिख़ अज़ीमाबादी

ज़िंदाँ में भी वही लब-ओ-रुख़्सार देखते

राम रियाज़

मिरी निगाह में ये रंग-ए-सोज़-ओ-साज़ न हो

राम कृष्ण मुज़्तर

फिर वही तू साथ मेरे फिर वही बस्ती पुरानी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सोचिए गर्मी-ए-गुफ़्तार कहाँ से आई

राज नारायण राज़

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

दीदनी है बहार का मंज़र

रईस अमरोहवी

एहसास-ए-ज़िम्मेदारी बेदार हो रहा है

राही फ़िदाई

लब-ए-गुदाज़ पे अल्फ़ाज़-ए-सख़्त रहते हैं

इक़बाल कैफ़ी

प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था

इक़बाल अशहर

ये मंज़र बे-दर-ओ-दीवार होता

इनाम नदीम

वो रश्क-ए-मेहर-ओ-क़मर घात पर नहीं आता

इमदाद अली बहर

आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब

इमदाद अली बहर

है मोहब्बत सब को उस के अबरू-ए-ख़मदार की

इमाम बख़्श नासिख़

जैसे जैसे दर्द का पिंदार बढ़ता जाए है

हुरमतुल इकराम

दिल-ए-आज़ुर्दा को बहलाए हुए हैं हम लोग

हुरमतुल इकराम

दूसरा तजरबा

हिमायत अली शाएर

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