फिर वही तू साथ मेरे फिर वही बस्ती पुरानी
फिर वही तू साथ मेरे फिर वही बस्ती पुरानी
एक इक रस्ता है तेरी रौनक़-ए-पा की कहानी
ऐ गुल-ए-आवारगी तेरी महक तारों से खेले
ऐ नदी बहता रहे दाइम तिरा बेदार पानी
सब्ज़ नीली धुँद में डूबे पहाड़ों से उतरती
क्या अजब मंज़र-ब-मंज़र रौशनी है दास्तानी
इक घने सरशार हासिल की फ़ज़ा है और दोनों
अब नहीं है दरमियाँ कोई भी मंज़िल इम्तिहानी
मैं कि था मुंकिर तिरा और अब कि मैं क़ाइल खड़ा हूँ
ऐ विसाल-ए-लम्हा-लम्हा ऐ अता-ए-आसमानी
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