बेन 10 Poetry (page 2)

कुछ ऐसी टूट के शहर-ए-जुनूँ की याद आई

सिद्दीक़ शाहिद

जिस तरफ़ जाऊँ उधर आलम-ए-तन्हाई है

शाज़ तमकनत

शाम के ढलते सूरज ने ये बात मुझे समझाई है

शायान क़ुरैशी

मुक़ाबिल इक ज़माना और सफ़-आराई मेरी

शौकत मेहदी

मुमकिन ही न थी ख़ुद से शनासाई यहाँ तक

शारिक़ कैफ़ी

कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ

शारिक़ कैफ़ी

कहाँ सोचा था मैं ने बज़्म-आराई से पहले

शारिक़ कैफ़ी

शाकी बद-ज़न आज़ुर्दा हैं मुझ से मेरे भाई यार

शमीम अब्बास

करने दो अगर क़त्ताल-ए-जहाँ तलवार की बातें करते हैं

शकील बदायुनी

बात से बात की गहराई चली जाती है

शकील आज़मी

शब-ए-तन्हाई

शाइस्ता मुफ़्ती

यूँ तो हम अहल-ए-नज़र हैं मगर अंजाम ये है

शहज़ाद अहमद

अब अपने चेहरे पर दो पत्थर से सजाए फिरता हूँ

शहज़ाद अहमद

ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई

शहज़ाद अहमद

ख़ल्क़ ने छीन ली मुझ से मिरी तन्हाई तक

शहज़ाद अहमद

पल भर में कैसे लोग बदल जाते हैं यहाँ

शहरयार

निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए

शहरयार

मुनकिर-ए-हक़

शहराम सर्मदी

अहल-ए-दिल को बुला रहा हूँ

शहराम सर्मदी

इक हुजूम-ए-गिर्या की हर नज़र तमाशाई

शाहिदा तबस्सुम

सो गया ओढ़ के फिर शब की क़बाएँ सूरज

शहबाज़ ख़्वाजा

न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का

शाह नसीर

जब सबक़ दे उन्हें आईना ख़ुद-आराई का

सेहर इश्क़ाबादी

भँवर में मशवरे पानी से लेता हूँ

सरफ़राज़ ज़ाहिद

आसेब-सिफ़त ये मिरी तन्हाई अजब है

समीना राजा

एक हंगामा बपा है अर्सा-ए-अफ़्लाक पर

सालिम सलीम

उस को मिल कर देख शायद वो तिरा आईना हो

सलीम शाहिद

मशवरा

सलीम फ़िगार

जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई

सलीम अहमद

दुख दे या रुस्वाई दे

सलीम अहमद

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