लोड Poetry (page 14)

खड़ा हुआ हूँ सर-ए-राह मुंतज़िर कब से

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

बहार बन के ख़िज़ाँ को न यूँ दिलासा दे

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

मुतज़ाद ज़ाविए

अब्दुल अहद साज़

ज़िक्र हम से बे-तलब का क्या तलबगारी के दिन

अब्दुल अहद साज़

तब-ए-हस्सास मिरी ख़ार हुई जाती है

अब्दुल अहद साज़

हद-ए-उफ़ुक़ पर सारा कुछ वीरान उभरता आता है

अब्दुल अहद साज़

कोई मिलता नहीं ये बोझ उठाने के लिए

अब्बास ताबिश

हँसने नहीं देता कभी रोने नहीं देता

अब्बास ताबिश

बहुत अज़ीज़ था आलम वो दिल-फ़िगारी का

आज़िम कोहली

उल्फ़तों का ख़ुदा नहीं हूँ मैं

अातिश इंदौरी

कब बार-ए-तबस्सुम मिरे होंटों से उठेगा

आनिस मुईन

ये क़र्ज़ तो मेरा है चुकाएगा कोई और

आनिस मुईन

नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ

आग़ा अकबराबादी

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