दीपक Poetry (page 2)

फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का

ज़ेबा

ख़ंजर चमका रात का सीना चाक हुआ

ज़ेब ग़ौरी

ढला न संग के पैकर में यार किस का था

ज़ेब ग़ौरी

दुनिया की सल्तनत में ख़ुदा के ख़िलाफ़ हैं

ज़मीर काज़मी

सुकूत-ए-शब में दिल-ए-दाग़-दाग़ रौशन है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है

ज़ाहिदा ज़ैदी

जब तक तुम्हारा हुस्न नुमायाँ न हो सका

ज़ाहीदा कमाल

जम्हूरियत

ज़ाहिद मसूद

'अनीस-नागी' के नाम

ज़ाहिद मसूद

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

हमें ख़बर है कि हम हैं चराग़-ए-आख़िर-ए-शब

ज़हीर काश्मीरी

ये कारोबार-ए-चमन इस ने जब सँभाला है

ज़हीर काश्मीरी

तू अगर ग़ैर है नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ क्यूँ है

ज़हीर काश्मीरी

हर आदमी को ख़्वाब दिखाना मुहाल है

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

जमाल पा के तब-ओ-ताब-ए-ग़म यगाना हुआ है

ज़हीर फ़तेहपूरी

ख़ैर से रहता है रौशन नाम-ए-नेक

ज़हीर देहलवी

बुझाऊँ क्या चराग़-ए-सुब्ह-गाही

ज़हीर देहलवी

हाथ से हैहात क्या जाता रहा

ज़हीर देहलवी

गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़

ज़हीर देहलवी

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

गुल हैं तो आप अपनी ही ख़ुश्बू में सोचिए

ज़फ़र सहबाई

रात भर सूरज के बन कर हम-सफ़र वापस हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

निगाह-ए-हुस्न-ए-मुजस्सम अदा को छूते ही

ज़फ़र मुरादाबादी

सफ़र का सिलसिला आख़िर कहाँ तमाम करूँ

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

दिल-ओ-निगाह को वीरान कर दिया मैं ने

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

शब भर रवाँ रही गुल-ए-महताब की महक

ज़फ़र इक़बाल

न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा है

ज़फ़र इक़बाल

सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें

ज़फ़र गोरखपुरी

देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे

ज़फ़र गोरखपुरी

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