हमें ख़बर है कि हम हैं चराग़-ए-आख़िर-ए-शब
हमारे बाद अंधेरा नहीं उजाला है
Gulzar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
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Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
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आरिज़-ए-शम्अ' पे नींद आ गई परवानों को
वो महफ़िलें वो मिस्र के बाज़ार क्या हुए
इस दौर-ए-आफ़ियत में ये क्या हो गया हमें
तू मिरी ज़ात मिरी रूह मिरा हुस्न-ए-कलाम
इश्क़ जब तक न आस-पास रहा
हर रोज़ ही इमरोज़ को फ़र्दा न करोगे
हम ख़ुद ही बे-लिबास रहे इस ख़याल से
मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ
दिल मर चुका है अब न मसीहा बना करो
बर्क़-ए-ज़माना दूर थी लेकिन मिशअल-ए-ख़ाना दूर न थी
हिज्र के दौर में हर दौर को शामिल कर लें