हमारे पास कोई गर्दिश-ए-दौराँ नहीं आती
हम अपनी उम्र-ए-फ़ानी साग़र-ओ-मीना में रखते हैं
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
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Wasi Shah
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Gulzar
Rahat Indori
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मैं हूँ वहशत में गुम मैं तेरी दुनिया में नहीं रहता
अहल-ए-दिल मिलते नहीं अहल-ए-नज़र मिलते नहीं
तमाम उम्र तिरी हम-रही का शौक़ रहा
बढ़ गए हैं इस क़दर क़ल्ब ओ नज़र के फ़ासले
मुज़्महिल होने पे भी ख़ुद को जवाँ रखते हैं हम
सीरत न हो तो आरिज़-ओ-रुख़्सार सब ग़लत
हर रोज़ ही इमरोज़ को फ़र्दा न करोगे
होती न हम को साया-ए-दीवार की तलाश
आज की तन्हाई से निकलो कल की आबादी में आओ
मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था
कुछ बस न चला जज़्बा-ए-ख़ुद-काम के आगे
आँधियाँ उट्ठीं फ़ज़ाएँ दूर तक कजला गईं