बढ़ गए हैं इस क़दर क़ल्ब ओ नज़र के फ़ासले
साथ हो कर हम-सफ़र से हम-सफ़र मिलते नहीं
Parveen Shakir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Habib Jalib
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हर रोज़ ही इमरोज़ को फ़र्दा न करोगे
इस दौर-ए-आफ़ियत में ये क्या हो गया हमें
किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया
तू मिरी ज़ात मिरी रूह मिरा हुस्न-ए-कलाम
मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ
कुछ बस न चला जज़्बा-ए-ख़ुद-काम के आगे
कितना दिलकश है तिरी याद का पाला हुआ अश्क
वो अक्सर बातों बातों में अग़्यार से पूछा करते हैं
तिरी चश्म-ए-तरब को देखना पड़ता है पुर-नम भी
हवा-ए-हिज्र चली दिल की रेगज़ारों में
होती न हम को साया-ए-दीवार की तलाश