कितना दिलकश है तिरी याद का पाला हुआ अश्क
सीना-ए-ख़ाक पे महताब गिरा हो जैसे
Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
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Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
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होती न हम को साया-ए-दीवार की तलाश
तू अगर ग़ैर है नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ क्यूँ है
मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था
मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ
जब ख़ामुशी ही बज़्म का दस्तूर हो गई
मुज़्महिल होने पे भी ख़ुद को जवाँ रखते हैं हम
इश्क़ जब तक न आस-पास रहा
शब-ए-ग़म याद उन की आ रही है
बड़े दिल-कश हैं दुनिया के ख़म ओ पेच
आज की तन्हाई से निकलो कल की आबादी में आओ
इक शख़्स रात बंद-ए-क़बा खोलता रहा
इश्क़ इक हिकायत है सरफ़रोश दुनिया की