दाग Poetry (page 16)

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर

ग़ालिब

रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा

ग़ालिब

रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़

ग़ालिब

रहम कर ज़ालिम कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

ग़ालिब

नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में

ग़ालिब

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें

ग़ालिब

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले

ग़ालिब

क्या तंग हम सितम-ज़दगाँ का जहान है

ग़ालिब

कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है

ग़ालिब

जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार

ग़ालिब

जो न नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल की करे शोला पासबानी

ग़ालिब

जराहत तोहफ़ा अल्मास अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया

ग़ालिब

जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं

ग़ालिब

हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी

ग़ालिब

है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा

ग़ालिब

है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और

ग़ालिब

गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज

ग़ालिब

गुलशन को तिरी सोहबत अज़-बस-कि ख़ुश आई है

ग़ालिब

ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स

ग़ालिब

गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग

ग़ालिब

गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा

ग़ालिब

फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर

ग़ालिब

दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया

ग़ालिब

दर-ख़ूर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ

ग़ालिब

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

ग़ालिब

बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे

ग़ालिब

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा

ग़ालिब

आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है

ग़ालिब

जाती रुत से प्यार करोगे

गौहर होशियारपुरी

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