दाग Poetry (page 18)

दो इश्क़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ढाका से वापसी पर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

'शोपीं' का नग़्मा बजता है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

यक-ब-यक शोरिश-ए-फ़ुग़ाँ की तरह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया इस तरह ग़म-ज़दों को क़रार आ गया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बाकिरा

फ़हमीदा रियाज़

उस ने पूछा भी मगर हाल छुपाए गए हम

फ़हीम शनास काज़मी

उजाला कैसा उजाले का ख़्वाब ला न सके

एज़ाज़ अफ़ज़ल

हम ने मयख़ाने की तक़्दीस बचा ली होती

एज़ाज़ अफ़ज़ल

अब सराब के चश्मे मौजज़न नहीं होते

एज़ाज़ अफ़ज़ल

मदावा-ए-जुनूँ सैर-ए-गुलिस्ताँ से नहीं होता

एजाज़ वारसी

चाँद

एजाज़ अहमद एजाज़

ख़याल के फूल खिल रहे हैं बहार के गीत गा रहा हूँ

एहसान दरबंगावी

मिरे मिटाने की तदबीर थी हिजाब न था

एहसान दानिश

जबीं की धूल जिगर की जलन छुपाएगा

एहसान दानिश

'आज़र' रहा है तेशा मिरे ख़ानदान में

दिलावर अली आज़र

कूचा-गर्दी में जवानी जाएगी

दिल शाहजहाँपुरी

कूचा-गर्दी में जवानी जाएगी

दिल शाहजहाँपुरी

सारे नुक़ूश जिस पे तिरे आशियाँ के हैं

दिल अय्यूबी

अपनी बेचारगी पे रो न सके

द्वारका दास शोला

मशवरा

दाऊद ग़ाज़ी

तुम से अब क्या कहें वो चीज़ है दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़

दत्तात्रिया कैफ़ी

लुत्फ़ हो हश्र में कुछ बात बनाए न बने

दत्तात्रिया कैफ़ी

क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मिलाऊँ किस की आँखों से मैं अपनी चश्म-ए-हैराँ को

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

ब-तर्ज़-ए-ख़्वाब सजानी पड़ी है आख़िर-कार

दानियाल तरीर

हज़रत-ए-दाग़ जहाँ बैठ गए बैठ गए

दाग़ देहलवी

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