दूर Poetry (page 46)

कृष्ण कन्हैया

हफ़ीज़ जालंधरी

अब ख़ूब हँसेगा दीवाना

हफ़ीज़ जालंधरी

ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए

हफ़ीज़ जालंधरी

ये और दौर है अब और कुछ न फ़रमाए

हफ़ीज़ जालंधरी

शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को

हफ़ीज़ जालंधरी

इन तल्ख़ आँसुओं को न यूँ मुँह बना के पी

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

ऐ दोस्त मिट गया हूँ फ़ना हो गया हूँ मैं

हफ़ीज़ जालंधरी

अगर मौज है बीच धारे चला चल

हफ़ीज़ जालंधरी

इक उम्र से हम तुम आश्ना हैं

हफ़ीज़ होशियारपुरी

ये और बात कि लहजा उदास रखते हैं

हफ़ीज़ बनारसी

लहू की मय बनाई दिल का पैमाना बना डाला

हफ़ीज़ बनारसी

हमारे अहद का मंज़र अजीब मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

भागते सायों के पीछे ता-ब-कै दौड़ा करें

हफ़ीज़ बनारसी

तुम्हारे गाँव से जो रास्ता निकलता है

हबीब तनवीर

सहाफ़ी से

हबीब जालिब

मुशीर

हबीब जालिब

माँ

हबीब जालिब

कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत

हबीब जालिब

हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं

हबीब जालिब

'फ़ैज़' और 'फ़ैज़' का ग़म भूलने वाला है कहीं

हबीब जालिब

आग है फैली हुई काली घटाओं की जगह

हबीब जालिब

गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट

हबीब मूसवी

वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए

हबीब मूसवी

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले

हबीब मूसवी

गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट

हबीब मूसवी

फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है

हबीब मूसवी

फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे

हबीब मूसवी

बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा

हबीब मूसवी

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