दूर Poetry (page 47)

तौर बे-तौर हुए जाते हैं

हबीब अशअर देहलवी

बे-नियाज़ी से मुदारात से डर लगता है

हबीब अशअर देहलवी

अब बहुत दूर नहीं मंज़िल-ए-दोस्त

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

हबीब आरवी

फिरता हूँ मैं घाटी घाटी सहरा सहरा तन्हा तन्हा

ग्यान चन्द

सद-साला दौर-ए-चर्ख़ था साग़र का एक दौर

गुस्ताख़ रामपुरी

साग़र में शक्ल-ए-दुख़्तर-ए-रज़ कुछ बदल गई

गुस्ताख़ रामपुरी

तारे हमारी ख़ाक में बिखरे पड़े रहे

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

धूल न बनना आईनों पर बार न होना

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

हाए क्या दौर-ए-ज़िंदगी गुज़रा

गुलज़ार देहलवी

उस सितमगर की मेहरबानी से

गुलज़ार देहलवी

उर्दू ज़बाँ

गुलज़ार

बे-ख़ुदी

गुलज़ार

अकेले

गुलज़ार

ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर

गुलज़ार

न कोई दीन होता है न कोई ज़ात होती है

गुलशन बरेलवी

हयात-ए-रवाँ

गुलनाज़ कौसर

शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई

गुलनार आफ़रीन

तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

शख़्सियत उस ने चमक-दार बना रक्खी है

गोविन्द गुलशन

उस ने माइल-ब-करम हो के बुलाया है मुझे

गोपाल मित्तल

दिल जलाने से कहाँ दूर अंधेरा होगा

गोपाल मित्तल

यास की बदली यूँ दिल पर छा गई

गोपाल कृष्णा शफ़क़

ये दौर है जो तुम्हारा रहेगा ये भी नहीं

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मुझ को ग़रीब और क़रज़-दार देख कर

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

हम तो वहाँ पहुँच नहीं सकते तमाम उम्र

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बयाबाँ दूर तक मैं ने सजाया था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ज़ेहन में दाएरे से बनाता रहा दूर ही दूर से मुस्कुराता रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

यूँ तो सदा-ए-ज़ख़्म बड़ी दूर तक गई

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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