दीवाना Poetry (page 14)

जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए

अंजुम रूमानी

हम सा दीवाना कहाँ मिल पाएगा इस दहर में

अंजुम लुधियानवी

हँसती आँखें हँसता चेहरा इक मजबूर बहाना है

अंदलीब शादानी

अक़्ल के भटके होऊँ को राह दिखलाते हुए

आनंद नारायण मुल्ला

फ़र्क़ जो कुछ है वो मुतरिब में है और साज़ में है

आनंद नारायण मुल्ला

कितना मुख़्तसर है ये ज़िंदगी का अफ़्साना

अमजद नजमी

अगर मस्जिद से वाइज़ आ रहे हैं

अमीर क़ज़लबाश

तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है

अमीर मीनाई

'अमीक़' छेड़ ग़ज़ल ग़म की इंतिहा कब है

अमीक़ हनफ़ी

तीरगी ही तीरगी है बाम-ओ-दर में कौन है

अमीन राहत चुग़ताई

अफ़्साना-ए-हयात को दोहरा रहा हूँ मैं

अमीन हज़ीं

इन्फ़िरादियत

अली सरदार जाफ़री

अब आ गया है जहाँ में तो मुस्कुराता जा

अली सरदार जाफ़री

गो वसीअ' सहरा में इक हक़ीर ज़र्रा हूँ

अली जव्वाद ज़ैदी

ग़ैर पूछें भी तो हम क्या अपना अफ़्साना कहें

अली जव्वाद ज़ैदी

अपाहिज गाड़ी का आदमी

अख़्तर-उल-ईमान

तेरा हर राज़ छुपाए हुए बैठा है कोई

अख़्तर सिद्दीक़ी

तेरा हर राज़ छुपाए हुए बैठा है कोई

अख़्तर सिद्दीक़ी

नज़्र-ए-वतन

अख़्तर शीरानी

एक हुस्न-फ़रोश से

अख़्तर शीरानी

बदनाम हो रहा हूँ

अख़्तर शीरानी

सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले

अख़्तर शीरानी

निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर

अख़्तर शीरानी

दिल-ए-दीवाना ओ अंदाज़-ए-बेबाकाना रखते हैं

अख़्तर शीरानी

दिल में ख़याल-ए-नर्गिस-ए-जानाना आ गया

अख़्तर शीरानी

किस को कहते हैं जफ़ा क्या है वफ़ा याद नहीं

अख़तर मुस्लिमी

कोशिश-ए-पैहम को सई-ए-राएगाँ कहते रहो

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

हर लम्हा अता करता है पैमाना सा इक शख़्स

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

जिन के नसीब में आब-ओ-दाना कम कम होता है

अकबर हैदराबादी

जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है

अकबर इलाहाबादी

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