दीवाना Poetry (page 12)

दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे

बहज़ाद लखनवी

न मेहराब-ए-हरम समझे न जाने ताक़-ए-बुत-ख़ाना

बेदम शाह वारसी

कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशाना तिरा और जल्वा-ख़ाना तिरा

बेदम शाह वारसी

काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए

बेदम शाह वारसी

बुत भी इस में रहते थे दिल यार का भी काशाना था

बेदम शाह वारसी

अगर काबा का रुख़ भी जानिब-ए-मय-ख़ाना हो जाए

बेदम शाह वारसी

ग़म-ए-आफ़ाक़ में आरिफ़ अगर करवट बदलता है

बेबाक भोजपुरी

कोई मेयार-ए-मोहब्बत न रहा मेरे बा'द

बासित भोपाली

हर तरफ़ सोज़ का अंदाज़ जुदागाना है

बासित भोपाली

पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में

बशीर बद्र

ब-हर-उनवाँ मोहब्बत को बहार-ए-ज़िंदगी कहिए

बशर नवाज़

रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

छोड़ कर कूचा-ए-मय-ख़ाना तरफ़ मस्जिद के

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

सज़ा

बाक़र मेहदी

साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है

बलवान सिंह आज़र

हादसात अब के सफ़र में नए ढब से आए

बकुल देव

तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा

ज़फ़र

या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता

ज़फ़र

क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं

ज़फ़र

ज़ालिम तिरे वादों ने दीवाना बना रक्खा

अज़ीज़ हैदराबादी

आतिश-ए-मीना नज़र आई हरीफ़ाना मुझे

अज़ीज़ हामिद मदनी

दिल में कुछ दर्द सिवा है यारो

अय्यूब रूमानी

फ़र्ज़ानों की इस बस्ती में एक अजब सौदाई है

अतहर नफ़ीस

कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं

असरार-उल-हक़ मजाज़

रात और रेल

असरार-उल-हक़ मजाज़

कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं

असरार-उल-हक़ मजाज़

ज़द पे आ जाएगा जो कोई तो मर जाएगा

असलम फ़र्रुख़ी

मिरे दिल को ज़ुल्फ़ों की ज़ंजीर कीजो

आसिफ़ुद्दौला

ये मिरी बज़्म नहीं है लेकिन

आसिफ़ रज़ा

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