दीवाना Poetry (page 10)

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ग़ालिब

हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है

ग़ालिब

है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में

ग़ालिब

ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स

ग़ालिब

बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला

ग़ालिब

छू भी तो नहीं सकते हम मौज-ए-सबा बन कर

फ़ुज़ैल जाफ़री

तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ न कुछ इश्क़ की तासीर का इक़रार तो है

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

फ़िराक़ गोरखपुरी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है

फ़िराक़ गोरखपुरी

हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-शम्-ओ-परवाना नहीं कहते

फ़िगार उन्नावी

हिसार-ए-जिस्म से आगे निकल गया होता

फ़ारूक़ नाज़की

वो न आएगा यहाँ वो नहीं आने वाला

फ़ारूक़ बख़्शी

रातों के अंधेरों में ये लोग अजब निकले

फ़रहत क़ादरी

जितने लोग नज़र आते हैं सब के सब बेगाने हैं

फ़रहत क़ादरी

इक ख़लिश सी है मुझे तक़दीर से

फ़रहत कानपुरी

ख़लल आया न हक़ीक़त में न अफ़्साना बना

फ़रहत एहसास

दिन ने इतना जो मरीज़ाना बना रक्खा है

फ़रहत एहसास

कभी तुम भीगने आना मिरी आँखों के मौसम में

फ़रह इक़बाल

ज़ीस्त का हासिल बनाया दिल जो गोया कुछ न था

फ़ानी बदायुनी

संग-ए-दर देख के सर याद आया

फ़ानी बदायुनी

नाम बदनाम है नाहक़ शब-ए-तन्हाई का

फ़ानी बदायुनी

जल्वा-ए-इश्क़ हक़ीक़त थी हुस्न-ए-मजाज़ बहाना था

फ़ानी बदायुनी

आह अब तक तो बे-असर न हुई

फ़ानी बदायुनी

हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद

फ़ना निज़ामी कानपुरी

तेरे दर से न उठा हूँ न उठूँगा ऐ दोस्त

फ़ना बुलंदशहरी

जल्वा जो तिरे रुख़ का एहसास में ढल जाए

फ़ना बुलंदशहरी

हर घड़ी पेश-ए-नज़र इश्क़ में क्या क्या न रहा

फ़ना बुलंदशहरी

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