दीवाना Poetry (page 11)

दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया

फ़ना बुलंदशहरी

अब तसव्वुर में हरम है न सनम-ख़ाना है

फ़ना बुलंदशहरी

फिर ज़बान-ए-इश्क़ चश्म-ए-ख़ूँ-फिशाँ होने लगी

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

एक मुद्दत से सर-ए-बाम वो आया भी नहीं

फ़ैज़ुल हसन

ऐ दिल-ए-बेताब ठहर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन न थी तिरी अंजुमन से पहले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फिर लौटा है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब सफ़र से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फिर आईना-ए-आलम शायद कि निखर जाए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हर आश्ना से उस बिन बेगाना हो रहा हूँ

फ़ाएज़ देहलवी

कार-ए-ख़ैर इतना तो ऐ लग़्ज़िश-ए-पा हो जाता

एजाज़ वारसी

जो जा चुके हैं ग़ालिबन उतरें कभी ज़ीना तिरा

एजाज़ उबैद

हर्फ़

एजाज़ फ़ारूक़ी

याद तेरी जो कभी आती है बहलाने को

एहसान दरबंगावी

जबीं की धूल जिगर की जलन छुपाएगा

एहसान दानिश

अदा-ए-हैरत-ए-आईना-गर भी रखते हैं

दिल अय्यूबी

तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ

दाऊद औरंगाबादी

कभू रोना कभू हँसना कभू हैरान हो जाना

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

रब्त है नाज़-ए-बुताँ को तो मिरी जान के साथ

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

बने हैं जब से वो लैला नई महमिल में रहते हैं

दाग़ देहलवी

मुझे ऐ अहल-ए-काबा याद क्या मय-ख़ाना आता है

दाग़ देहलवी

हुब्ब-ए-क़ौमी

चकबस्त ब्रिज नारायण

शिकन-अंदर-शिकन याद आ गया है

बुशरा ज़ैदी

पूछते हैं बज़्म में सुन कर वो अफ़्साना मिरा

ब्रहमा नन्द जलीस

दास्तान-ए-शमअ' थी या क़िस्सा-ए-परवाना था

ब्रहमा नन्द जलीस

इतना भी न साक़ी होश रहा पी कर ये हमें मय-ख़ाना था

बिस्मिल इलाहाबादी

दश्त-पैमाई का गर क़स्द मुकर्रर होगा

भारतेंदु हरिश्चंद्र

बज़्म-ए-दुश्मन में बुलाते हो ये क्या करते हो

बेख़ुद देहलवी

हैं वस्ल में शोख़ी से पाबंद-ए-हया आँखें

बेखुद बदायुनी

तुम याद मुझे आ जाते हो

बहज़ाद लखनवी

है ख़िरद-मंदी यही बा-होश दीवाना रहे

बहज़ाद लखनवी

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