ज़द पे आ जाएगा जो कोई तो मर जाएगा

ज़द पे आ जाएगा जो कोई तो मर जाएगा

वक़्त का काम गुज़रना है गुज़र जाएगा

ख़ुद उसे भी नहीं मालूम है मंज़िल अपनी

जाने वाले से न पूछो वो किधर जाएगा

आज अंधेरा है तो कल कोई चराग़-ए-उम्मीद

मतला-ए-वक़्त पे सूरज सा निखर जाएगा

इस तरफ़ आग का दरिया है उधर दार-ओ-रसन

दिल वो दीवाना कि जाएगा मगर जाएगा

कोई मंज़िल नहीं बाक़ी है मुसाफ़िर के लिए

अब कहीं और नहीं जाएगा घर जाएगा

कू-ए-क़ातिल में तही-दस्त को जा मिलती नहीं

जो भी जाएगा लिए हाथ में सर जाएगा

कितनी तारीकी है शहर-ए-दिल-ओ-जाँ पर तारी

कोई अंदाज़ा नहीं कौन किधर जाएगा

एक गुल-दस्ता बनाया था प-ए-राहत-ए-जाँ

अब ये अंदेशा है हर फूल बिखर जाएगा

एक दिन ऐसा भी क़िस्मत से मिले जब 'असलम'

रक़्स करता हुआ महबूब-नगर जाएगा

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