आग सी लग रही है सीने में
अब मज़ा कुछ नहीं है जीने में
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हंगामा-ए-हस्ती से गुज़र क्यूँ नहीं जाते
कोई मंज़िल नहीं बाक़ी है मुसाफ़िर के लिए
रौशनी हो रही है कुछ महसूस
सारे दिल एक से नहीं होते
ज़द पे आ जाएगा जो कोई तो मर जाएगा
ये हिकायत तमाम को पहुँची
धनक की बूँद
मैं सोचता हूँ कहीं तू ख़फ़ा न हो जाए
न देख मुझ को मोहब्बत की आँख से ऐ दोस्त