कोई मंज़िल नहीं बाक़ी है मुसाफ़िर के लिए
अब कहीं और नहीं जाएगा घर जाएगा
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न देख मुझ को मोहब्बत की आँख से ऐ दोस्त
ज़द पे आ जाएगा जो कोई तो मर जाएगा
धनक की बूँद
आग सी लग रही है सीने में
ये हिकायत तमाम को पहुँची
हंगामा-ए-हस्ती से गुज़र क्यूँ नहीं जाते
मैं सोचता हूँ कहीं तू ख़फ़ा न हो जाए
रौशनी हो रही है कुछ महसूस
सारे दिल एक से नहीं होते