धड़कने Poetry (page 2)

इक ख़्वाब कि जो आँख भिगोने के लिए है

हैदर क़ुरैशी

शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को

हफ़ीज़ जालंधरी

उठने को तो उठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन

हादी मछलीशहरी

उठने को तो उट्ठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन

हादी मछलीशहरी

है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है

हबीब मूसवी

था पहला सफ़र उस की रिफ़ाक़त भी नई थी

फ़रहत नदीम हुमायूँ

मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था

फ़रह इक़बाल

रात गहरी है मगर एक सहारा है मुझे

फ़ैज़ी

जो भी निकले तिरी आवाज़ लगाता निकले

दिनेश नायडू

जुस्तुजू मेरी कहीं थी और मैं भटका कहीं

भारत भूषण पन्त

सुब्ह का भेद मिला क्या हम को

बाक़ी सिद्दीक़ी

मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए

अज़्म बहज़ाद

रंग कहाँ है साया सा है

अज़ीम कुरेशी

ख़ुद हमीं को राहतों के कैफ़ का चसका न था

आज़ाद गुलाटी

दिल्ली से वापसी

असरार-उल-हक़ मजाज़

कितनी हसरत से तिरी आँख का बादल बरसा

आरिफ़ अब्दुल मतीन

चाँद मेरे घर में उतरा था कहीं डूबा न था

आरिफ़ अब्दुल मतीन

तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है

अमीर मीनाई

ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा

ऐतबार साजिद

जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी

अहमद नदीम क़ासमी

रात क्या सोए कि बाक़ी उम्र की नींद उड़ गई

अहमद फ़राज़

मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का

अहमद फ़राज़

हाँफती नद्दी में दम टूटा हुआ था लहर का

आफ़ताब इक़बाल शमीम

करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है

आफ़ताब हुसैन

सरिश्क-ए-ग़म की रवानी थमी है मुश्किल से

अफ़सर माहपुरी

खिड़की ने आँखें खोली

आदिल मंसूरी

सड़कों पर सूरज उतरा

आदिल मंसूरी

आगे वो जा भी चुके लुत्फ़-ए-नज़ारा भी गया

अबु मोहम्मद वासिल

मजीद-अमजद के लिए

अबरार अहमद

हँस हँस के जाम जाम को छलका के पी गया

अब्दुल हमीद अदम

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