मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का

मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का

बात कर तुझ पर गुमाँ होने लगा तस्वीर का

रात क्या सोए कि बाक़ी उम्र की नींद उड़ गई

ख़्वाब क्या देखा कि धड़का लग गया ताबीर का

कैसे पाया था तुझे फिर किस तरह खोया तुझे

मुझ सा मुंकिर भी तो क़ाएल हो गया तक़दीर का

जिस तरह बादल का साया प्यास भड़काता रहे

मैं ने ये आलम भी देखा है तिरी तस्वीर का

जाने किस आलम में तू बिछड़ा कि है तेरे बग़ैर

आज तक हर नक़्श फ़रियादी मिरी तहरीर का

इश्क़ में सर फोड़ना भी क्या कि ये बे-मेहर लोग

जू-ए-ख़ूँ को नाम दे देते हैं जू-ए-शीर का

जिस को भी चाहा उसे शिद्दत से चाहा है 'फ़राज़'

सिलसिला टूटा नहीं है दर्द की ज़ंजीर का

(3409) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Muntazir Kab Se Tahayyur Hai Teri Taqrir Ka In Hindi By Famous Poet Ahmad Faraz. Muntazir Kab Se Tahayyur Hai Teri Taqrir Ka is written by Ahmad Faraz. Complete Poem Muntazir Kab Se Tahayyur Hai Teri Taqrir Ka in Hindi by Ahmad Faraz. Download free Muntazir Kab Se Tahayyur Hai Teri Taqrir Ka Poem for Youth in PDF. Muntazir Kab Se Tahayyur Hai Teri Taqrir Ka is a Poem on Inspiration for young students. Share Muntazir Kab Se Tahayyur Hai Teri Taqrir Ka with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.