धूल Poetry (page 4)

जलती हुई रुतों के ख़रीदार कौन हैं

हसन अख्तर जलील

ख़ुद ख़मोशी के हिसारों में रहे

हामिदी काश्मीरी

इक ख़्वाब कि जो आँख भिगोने के लिए है

हैदर क़ुरैशी

मैं काएनात में

गुलज़ार

एक और रात

गुलज़ार

दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म

गुलज़ार

रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले

गुलज़ार

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद

गुलज़ार

भूले-बिसरे हुए ग़म फिर उभर आते हैं कई

फ़ुज़ैल जाफ़री

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

आइने रूप चुरा लेंगे उधर मत देखो

फ़े सीन एजाज़

मिरी ज़मीं पे लगी आप के नगर में लगी

फ़ातिमा हसन

दुनिया क्या है बर्फ़ की इक अलमारी है

फ़ारूक़ शफ़क़

रास्ता दे ऐ हुजूम-ए-शहर घर जाएँगे हम

फ़रहत एहसास

ख़िलाफ़-ए-गर्दिश-ए-मा'मूल होना चाहता हूँ

फ़रहत एहसास

दोनों का ला-शुऊ'र है इतना मिला हुआ

फ़रहत एहसास

औरों ने उस गली से क्या क्या न कुछ ख़रीदा

फ़रहत एहसास

काग़ज़ के फूल

फ़रीद इशरती

बे-बाक अँधेरे

फ़रीद इशरती

है दाग़ दाग़ मिरा दिल मगर मलूल नहीं

फ़रीद इशरती

हज़र करो मिरे तन से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अफ़्रीक़ा कम-बैक

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

राहदारी में गूँजती नज़्म

फ़हीम शनास काज़मी

अली-बाबा कोई सिम-सिम

फ़हीम शनास काज़मी

ऐ मुबारज़-तलब

फ़हीम शनास काज़मी

दिल-ए-तबाह को अब तक नहीं यक़ीं आया

फ़हीम शनास काज़मी

दरख़्त-ए-जाँ पर अज़ाब-रुत थी न बर्ग जागे न फूल आए

एज़ाज़ अहमद आज़र

चलो कुछ तो राह तय हो न चले तो भूल होगी

एज़ाज़ अफ़ज़ल

शहर-ए-बीना के लोग

एजाज़ रिज़वी

तंहाई

एजाज़ फ़ारूक़ी

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