धूल Poetry (page 1)

आईने के सामने

हम दोनों में कोई न अपने क़ौल-ओ-क़सम का सच्चा था

ज़ुबैर रिज़वी

छोड़ कर घर की फ़ज़ा रानाइयाँ पछता गईं

ज़ुबैर रिज़वी

आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो

ज़िया जालंधरी

रेतीली कितनी हवा है इर्द-गिर्द

ज़ीशान साजिद

इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी

ज़ेब ग़ौरी

धूप थे सब रास्ते दरकार था साया हमें

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

मोहब्बत एक ऐसा रास्ता है

ज़करिय़ा शाज़

नज़्म

ज़ाहिद डार

रू-ब-रू बुत के दुआ की भूल हो जाए तो फिर

याक़ूब तसव्वुर

कितनी बार बुलाया उस को

वज़ीर आग़ा

अब दिन की बातें करते हैं

वज़ीर आग़ा

मंज़र था राख और तबीअत उदास थी

वज़ीर आग़ा

कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

राग अपना गा हमारा ज़िक्र मत कर ऐ रक़ीब

वलीउल्लाह मुहिब

जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत

वली उज़लत

जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत

वली उज़लत

हँसूँ जूँ गुल तिरे ज़ख़्मों से उल्फ़त इस को कहते हैं

वली उज़लत

शहर बेज़ार रहगुज़र तन्हा

विजय शर्मा अर्श

वो रंग-रूप मसाफ़त की धूल चाट गई

तौक़ीर रज़ा

फूल मुरझा जाएँगे काँटे लगे रह जाएँगे

तसनीम आबिदी

ज़वाल की आख़िरी हिचकियाँ

तबस्सुम काश्मीरी

उदासियों की रुत

तबस्सुम काश्मीरी

छोटी सी ये बात सही पर खींचे है ये तूल मियाँ

सय्यद शकील दस्नवी

भूल मेरी क़ुबूल की उस ने

सय्यद सग़ीर सफ़ी

दिल लगाने की भूल थे पहले

सूर्यभानु गुप्त

यार गर्म-ए-मेहरबानी हो गया

सिराज औरंगाबादी

कभी तुम मोल लेने हम कूँ हँस हँस भाव करते हो

सिराज औरंगाबादी

ज़िंदगानी का क्या करें साहब

शुबह तराज़

दूर फ़ज़ा में एक परिंदा खोया हुआ उड़ानों में

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

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